छाती में जिगर और किडनी लेकर जन्मे पाँच नवजातों को अमृता हॉस्पिटल, फरीदाबाद ने दिया जीवनदान
Amrita Hospital, Faridabad gave life to Five Newborns
दुर्लभ जन्मजात विकार कंजेनिटल डायफ्रामेटिक हर्निया के अत्यंत जटिल मामलों में टीम ने की सफल सर्जरी — सभी बच्चे स्वस्थ होकर भेजे अपने घर
नवजात के स्वस्थ्य होने से खुश है परिवार के लोग
फरीदाबाद। दयाराम वशिष्ठ: अमृता हॉस्पिटल, फरीदाबाद ने एक अत्यंत दुर्लभ और जीवन-घातक जन्मजात स्थिति से जूझ रहे पाँच नवजात शिशुओं को सफलतापूर्वक उपचार कर जीवनदान दिया है। इन बच्चों का जन्म ऐसे हुआ था कि उनका जिगर, किडनियाँ, आंतें और पेट का हिस्सा छाती की गुहा में मौजूद थे, जिससे उनके फेफड़ों को विकसित होने का पर्याप्त स्थान नहीं मिल पाया। अस्पताल के डॉक्टरों ने नवजात की गहन जांच के बाद सफल सर्जरी की तथा अपनी देखभाल की लंबी प्रक्रिया में रखा। अब पांचों शिशु पूरी तरह स्वस्थ्य होने पर उनके घर भेज दिया गया है।
नवजात में जन्मजात की इस स्थिति को कंजेनिटल डायफ्रामेटिक हर्निया (CDH) कहा जाता है। इस तरह की यह जन्मजात स्थिति 5,000 जन्मों में से एक आदि में देखने को मिलती है। अस्पताल में पिछले तीन महीनों में पांच नवजात का इस तरह का सफल ऑपरेशन किया गया। इनमें से चार मामलों में हर्निया बाईं ओर था, जहाँ उपचार की जटिलता अपेक्षाकृत नियंत्रित रही, जबकि एक मामला दाईं ओर का था, जो शिशु शल्य-चिकित्सा में सबसे कठिन श्रेणी में आता है। इस गंभीर मामले में बच्चे का जिगर लगभग पूरी तरह छाती में खिसक गया था और फेफड़ों का विकास अत्यंत सीमित रह गया था। जन्म के तुरंत बाद बच्चे को गंभीर श्वसन संकट में वेंटिलेटर पर रखना पड़ा। सर्जरी के दौरान डॉक्टरों ने अत्यंत सटीकता के साथ जिगर और आंतों को उनकी प्राकृतिक स्थिति में वापस स्थापित किया और डायफ्राम का पुनर्निर्माण स्थानीय ऊतकों की मदद से किया। सर्जरी के बाद की स्थिति भी उतनी ही चुनौतीपूर्ण रही, जहाँ नवजात को लंबे समय तक उच्च स्तरीय वेंटिलेशन, नियंत्रित दवाओं, पोषण प्रबंधन और निरंतर निगरानी की आवश्यकता पड़ी।
नवजात का सफल ऑपरेशन करने वाले अस्पताल के सीनियर कंसल्टेंट और हेड, पीडियाट्रिक सर्जरी डॉ. नितिन जैन,, ने कहा कि कंजेनिटल डायफ्रामेटिक हर्निया केवल जन्म के समय ही चुनौती नहीं, बल्कि यह गर्भ के दौरान ही फेफड़ों के विकास को रोक देता है। उन्होंने बताया कि दाईं ओर के CDH, जहाँ जिगर छाती में होता है, शल्य-चिकित्सकों के लिए सबसे कठिन स्थिति मानी जाती है। ऐसे मामलों में हर मिनट और हर निर्णय बच्चे की जान से जुड़ा होता है। टीम ने इस बच्चे के लिए ‘हार नहीं मानने’ के दृष्टिकोण के साथ काम किया और आज इस शिशु को अपने दम पर साँस लेते देखना वास्तव में ‘दूसरा जन्म’ जैसा लगता है।
नियोनेटोलॉजी विभाग के सीनियर कंसल्टेंट, डॉ. हेमंत शर्मा, ने कहा कि ऐसे मामलों में सर्जरी से पहले और बाद में फेफड़ों में रक्त प्रवाह और रक्तचाप के संतुलन की निगरानी अत्यंत सूक्ष्म होती है। पोषण, तरल पदार्थ, औषधियों और वेंटिलेशन के स्तरों में थोड़ी सी चूक भी गंभीर जटिलता का कारण बन सकती है। उन्होंने बताया कि नवजात ICU की योग्य नर्सिंग टीम, डॉक्टरों और तकनीकी सहयोग ने मिलकर यह कठिन कार्य पूरा किया।
बच्चे का जन्म होते ही चिंतित हो उठे थे परिवारजन
सफल ऑपरेशन होने से स्वस्थ्य हुए एक नवजात के एक परिवार ने अनुभव को भावनात्मक रूप से साझा करते हुए कहा कि जब उन्हें पता चला कि उनके बच्चे के अंग छाती में हैं, तो उन्हें लगा जैसे सब कुछ समाप्त हो गया है। ICU में बिताया हर दिन उनके लिए भय और उम्मीद के बीच की लंबी प्रतीक्षा थी। अब अपने बच्चे को सामान्य रूप से सांस लेते, दूध पीते और मुस्कुराते हुए देखना उनके लिए वास्तविक चमत्कार है, और वे इस अनुभव को अपने बच्चे का दूसरा जन्म मानते हैं।
अमृता हॉस्पिटल, फरीदाबाद आज देश में जटिल नवजात सर्जरी और दीर्घकालिक NICU देखभाल के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण आशा केंद्र के रूप में उभर रहा है, जहाँ गंभीरतम परिस्थितियों में भी जीवन को दोबारा जीने का अवसर मिलता है।